हिमाचल प्रदेश की सुरमई वादियों में यूं तो कदम-कदम पर देवस्थल मौजूद हैं, लेकिन इनमें से कुछ एक ऐसे भी हैं

हिमाचल प्रदेश की सुरमई वादियों में यूं तो कदम-कदम पर देवस्थल मौजूद हैं, लेकिन इनमें से कुछ एक ऐसे भी हैं जो अपने में अनूठी गाथाएँ और रहस्य समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर है निरमंड का परशुराम मंदिर | यह मंदिर शिमला से करीब 150 किलोमीटर दूर रामपुर बुशहर के पास स्थित निरमंड गाँव में है| मान्यता है कि भगवान् परशुराम ने यहाँ अपनी जिन्दगी के अहम् वर्ष गुजारे थे। किवदंतियों के अनुसार ऋषि जमदग्नि हिमाचल के वर्तमान सिरमौर जिला के समीप जंगलों में तपस्या किया करते थे| उनकी पत्नी और परशुराम की माता रेणुका भी आश्रम में उनके साथ रहती थीं। ऋषि जमदग्नि को नित्य पूजा के लिए यमुना के जल की जरूरत होती थी।



यह जिम्मेदारी रेणुका पर थी। रेणुका अपने तपोबल रोज ताज़ा रेत का घडा बनाकर उसे सांप के कुंडल पर धर कर आश्रम लाया करती थीं। लेकिन एक दिन रस्ते में गन्धर्व जोड़े की क्रीडा देख लेने के कारण उनका ध्यान भंग हो गया और नतीजा यह निकला की तपोबल क्षीण होने के कारण उस दिन न तो रेत का घडा बन पाया और न ही सांप आया | इस कारण


जमदग्नि की पूजा में विघ्न आ गया। ऋषि इस से इतना व्यथित हुए की क्रोधावेश में आकर उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र परशुराम को माँ रेणुका के वध का आदेश दिया| पितृभक्त परशुराम ने तुंरत पिता की आज्ञा का पालन किया और रेणुका को मौत के घाट उतार दिया। बेटे की पित्री भक्ति से जमदग्नि प्रस्सन हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा तो परशुराम माँ को दोबारा जीवित करवा लिया |


ऋषि और रेणुका की बात तो यहीं आई गयी हो गयी लेकिन परशुराम इसके बाबजूद मात्रिहत्या के भाव से व्यथित रहने लगे। पश्चताप की इसी ज्वाला की जलन से त्रस्त होकर उन्होंने पिता का आश्रम त्याग दिया और प्रायश्चित के उदेश्य से हिमालय की और कूच कर लिया | इसी क्रम में अंतत परशुराम ने निरमंड में डेरा डाला। यहाँ उन्होंने माँ रेणुका को समर्पित एक मंदिर भी बनवाया जो आज भी देवी अम्बिका के मंदिर के रूप में यहाँ विद्यमान है। इस मंदिर में रेणुका की पौने फुट की प्रतिमा है जो नहं के रेणुका मंदिर की प्रतिमा से मेल खाती है।



परशुराम ने यहाँ जो आश्रम बनाया था उसी कोआज परशुराम मंदिर के तौर पर पूजा जाता है। यहआश्रम पहाडी और जंगली जानवरों के इलाके में

होने के कारण चारों तरफ से बंद था और आने-जाने के लिए एक ही मुख्य द्वार था। मंदिर का यह मूल स्वरुप आज भी जस का तस है। कहते हैं यहीं पर मात्रि हत्या के दोष निवारण के लिए परशुराम ने एक यज्य भी शुरू करवाया जिसमें तब नरबलि दी जाती थी। किवदंतियों की मानें तो कालांतर में यही नरबलि मौजूदा भूंडा यया के तौर पर प्रचलित हुयी। जो आज भी जारी है।


एक अन्य कथा के अनुसार परशुराम ने निरमंड को ख़ास तौर पर क्षत्रियों के संहार के लिए त्यार करने हेतु बसाया था | लेकिन कारण यहाँ भी माता रेणुका थीं| राजा सहस्त्रार्जुन के रेणुका के प्रति प्रेम की परिणिति आखिरकार जमदग्नि और रेणुका के वध के रूप में हुयी। इससे परशुराम कुपित हो उठे और उन्होंने धरती से क्षत्रियों के संहार का संकल्प लिया जिसे पूरा करने के लिए निरमंड में आश्रम बनाया | अब इनमें से सच कौन सी धारणा है यह कहना तो मुश्किल है लेकिन दोनों से यह जरूर साबित होता है की परशुराम ने ही निरमंड बसाया था। यही कारण है की दूसरे तमाम देवों के मंदिर होने के बाबजूद निरमंड में आज भी परशुराम को ही मुख्य देव माना जाता है।



परशराम जी का मंदिर गाँत के तीनों तीन स्थित है परशुराम जी का मदिर गाव के बीचो-बीच स्थित हर खास बात यह की आप गाँव के किसी भी रास्ते


पर चल दें परशुराम मंदिर जरूर पहुंचेंगे | परशुराम मंदिर की मूलत लकडी की बनी हुयी है प्राचीन काष्टकला उकेरी हुयी है। मुख्य द्वार

आज भी एक ही है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान

परशुराम जी की तीन मुंहों वाली मूर्ति स्थापित है।

यह मूर्ति काश्मीर रियासत की तत्कालीन महारानी

अगरतला ने स्थापित करवाई थी। कहा जाता है की

इसके मुख्य मुख के माथे पर तीसरी आँख के रूप

भी जड़ा हुआ था। इसके अलावा यहीं पर

 जी के तीनों मुंहों के लिए चांदी का मुखौटा

भी हुआ करता था जो बाद में चोरी हो गया था |

हालाँकि आज भी यहाँ के भण्डार में समुद्रसेन के

काल का स्वर्णपात्र मौजूद है। इसके अलावा देवी के

आभूषण भी हैं। इन्हें भूंडा यज्य के मौके पर जनता

के दर्शनार्थ रखा जाता है। बाकी के समय यह ताले

में बंद रहते हैं। मंदिर के प्रांगण में सदियों पुराने

शिलालेख और प्रस्तर की प्राचीन प्रतिमाएँ भी हैं जो

तत्कालीन भव्यता को सहज ही ब्यान करती हैं।

परशुराम मंदिर के देखरेख हालाँकि एक समिति

करती है लेकिन इसे देख कर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है की यह स्थानीय समिति के बस का रोग नहीं है और इसके लिए व्यापक स्तर पर सरकारी प्रयासों की जरूरत है। गाँव के लोग इस प्राचीन मंदिर और उस कारण निरमंड के साथ जुड़े इतिहास के चलते निरमंड को धरोहर का दर्जा मांग रहे हैं। लेकिन यदि सरकार परशुराम मंदिर को ही सहेज ले तो भी बड़ी बात होगी। थोड़े से प्रयास और प्रचार से इसे इलाके का प्रमुख धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाया जा सकता है।

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